मुजफ्फरपुर कांड को लेकर बिहार डायलॉग में फूटा आधी आबादी का गुस्सा, यौन हिंसामुक्त समाज की उठी मांग

- रेप की शिकार बालिका गृह की बच्चियों के मन की उलझने कौन सुलझायेगा : डॉ बिंदा सिंह, क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट
- सोचती हूं, अगर उस बालिका गृह में मैं होती तो क्या करती : प्रियस्वरा भारती, किलकारी की किशोरी
- कस्टोडियल रेप की तरह देखें मुजफ्फरपुर की घटना को : मीना तिवारी, एपवा की अध्यक्ष
- मुजफ्फरपुर तक सीमित कर देने से नहीं होगा यौन हिंसा का समाधान : शाहिना परवीन, सामाजिक कार्यकर्ता
- ठेके की तरह बंटता है बाल गृहों का काम, इसलिए एनजीओ अपना फायदा देखते हैं : प्रमोद कुमार शर्मा
पटना : बिहार में मुज्जफरपुर स्थित बालिका गृह में घटित वीभत्स घटना को लेकर उद्देलित पटना का बौद्धिक समाज आज बारिश और जाम के बीच बीआईए हॉल में जुटा. बिहार डायलॉग के इस आयोजन में लोगों के सवाल खत्म होने का नाम नहीं ले रहे थे. चिंताएं जो मन में दबी थी वो फूट निकली. पहले महिलाओं ने अपने मन के भावों को व्यक्त किया. बाद में विशेषज्ञों ने बिहार के बाल गृहों की स्थिति का अवलोकन प्रस्तुत किया. चार घंटे चले इस आयोजन में वक्ता और श्रोता का भेद मिट गया और एक सुर में कहा गया कि यह घटना सभ्य समाज के माथे पर कलंक है. अब समाज और सरकार दोनों को मिलकर तत्काल इसका समाधान तलाशना होगा.
पहला सत्र महिलाओं का था, जिसमें सोलह वर्ष की प्रियस्वरा से लेकर हिंदी और मैथिली की बुजुर्ग कथाकार उषा किरण खान तक मंच पर उपस्थित थीं. पद्मश्री उषा किरण खान ने कहा कि यह बहुत ही
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