ताक पर सुरक्षा: व्यवसाय का रूप ले चुका है गर्ल्स हॉस्टल का धंधा, छह हजार रुपये किराया, सुविधा जीरो

मजबूरी का फायदा उठाते हैं हॉस्टल संचालक, वसूलते हैं मनमाना किराया
बेहतर एजुकेशन व कैरियर को लेकर छात्राएं बिहार के विभिन्न जिलों से पटना आती हैं. इन क्षेत्रों में कोचिंग, कॉलेज होने के कारण लड़कियों को यह क्षेत्र पसंद आता है और इसी स्थिति का फायदा उठाकर हॉस्टल संचालक उनसे मनमाना किराया वसूल रहे हैं, लेकिन सुविधा के नाम पर कुछ नहीं देते हैं. एक अनुमान के तहत इन इलाकों में सौ से अधिक गर्ल्स हॉस्टल हैं जो अधिक पैसे लेकर भी सुविधा नहीं देते हैं. हॉस्टल लेने के समय रहने की सुविधा से लेकर अच्छे खान-पान की गारंटी दी जाती है, लेकिन छात्रा जैसे ही वहां कमरा या फिर बेड लेकर रहना शुरू करती हैं वैसे ही उन्हें असलियत की जानकारी होती है. वे दूसरे हॉस्टल में नहीं जा पाती हैं क्योंकि वहां भी इसी तरह की व्यवस्था होती है. एक छात्रा ने बताया कि मेस का खाना खाने के कारण उसकी तबीयत हमेशा खराब हो जाती है.
किराये का कमरा लेकर चलाया जाता है हॉस्टल : इन इलाकों में स्थित अधिकतर गर्ल्स हॉस्टल किराये के भवन या कमरों में चलाये जाते हैं. हॉस्टल के नीचे व्यावसायिक प्रतिष्ठान होते हैं जहां हमेशा युवकों की भीड़ लगी रहती है. इसके अलावा किसी-किसी भवन में एक तल्ला किराये पर लेकर भी हॉस्टल चलाये जाते हैं जहां अन्य किरायेदार भी होते हैं. उस भवन में हमेशा चहलकदमी होती रहती है. वहां अन्य लोग भी रहते हैं इसलिए किसी को वहां आने-जाने से नहीं रोका जा सकता है. इसके अलावा अगर हॉस्टल के नीचे दुकान या कार्यालय हैं तो वहां भी किसी को आने-जाने से नहीं रोका जा सकता है. इसके कारण उनकी सुरक्षा को लेकर खतरा बना रहता है. गर्ल्स हॉस्टलों वाले इलाकों में छेड़खानी की घटना हमेशा घटित होती रहती हैं. सबसे ज्यादा परेशानी रात में होती हैं क्योंकि गली-मुहल्लों में प्रकाश की सही व्यवस्था नहीं है. छात्राओं को अंधेरे में ही हॉस्टल तक आना-जाना पड़ता है और इसका फायदा लफंगे उठाते हैं.
अधिक है गर्ल्स हॉस्टलों का मासिक किराया
गर्ल्स हॉस्टलों का मासिक किराया भी अधिक होता है. हॉस्टल संचालक खुद मेस भी संचालित करते हैं.
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