योग्य शिक्षकों की देशव्यापी कमी की समस्या की लगातार अनदेखी

योग्य शिक्षकों की देशव्यापी कमी की समस्या की लगातार अनदेखीशिक्षक दिवस एक पावन अवसर है. इस मौके पर शिक्षा के गिरते स्तर पर गंभीर चर्चा की उम्मीद की जाती है. इस समस्या को लेकर  देश के शिक्षाविद, नेता और शिक्षक प्रतिनिधि कोई गंभीर विचार-विमर्श करेंगे, ऐसी उम्मीद स्वाभाविक है. 
 
पर अपवादों को छोड़ कर ऐसा इस बार भी नहीं हो सका. इस देश-प्रदेश में अब भी योग्य  शिक्षक  हैं. पर उनकी तेजी से कमी होती जा रही है. क्योंकि, शालाओं में ही शिक्षण-परीक्षण की हालत दयनीय है. पर्याप्त संख्या में अच्छे शिक्षक निकलेंगे कहां? देश में छात्रों के अनुपात में भी शिक्षकों की भी भारी कमी है. 
 
‘शिक्षक दिवस’ पर शिक्षकों की महत्ता व उनकी कुछ मूलभूत समस्याओं के साथ-साथ यह कमी भी याद आ जाती है. इस कमी के  लिए सिर्फ शिक्षक जिम्मेदार नहीं है. अधिक जिम्मेदार तो दूसरे संबंधित लोग हैं. जहां परीक्षाओं में कदाचार की छूट हो और प्राप्तांकों के आधार पर शिक्षकों की बहाली हो जाये, वहां शिक्षकों में गुणवत्ता कहां से आयेगी? यदि शिक्षकों की बहाली के लिए आयोजित  परीक्षा भी कदाचार से मुक्त न हो, तो फिर वहां क्या होगा? हालांकि, इस देश में तो लगभग हर तरह की परीक्षा में कदाचार की खबरें आती रहती हैं. 
 
यहां तक कि मेडिकल-इंजीनियरिंग परीक्षाओं में भी. पर शिक्षक भर्ती परीक्षा में कदाचार अधिक मारक है. शिक्षकों पर तो हर क्षेत्र के लिए योग्य छात्र तैयार करने की जिम्मेदारी है. वहीं कमी रह जायेगी तो उसका कुप्रभाव अन्य क्षेत्रों पर भी पड़ेगा. कदाचार को  कैसे लोहे के हाथों से रोका जाये, इस पर देश में गंभीर चर्चा की जरूरत है. पर चर्चा नहीं होती. शिक्षक दिवस को ऐसी चर्चा का अवसर बनाया जा सकता है. 

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